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अ꣣भि꣢ प्रि꣣या꣢ दि꣣वः꣢ क꣣वि꣢꣫र्विप्रः꣣ स꣡ धार꣢꣯या सु꣣तः꣢ । सो꣡मो꣢ हिन्वे परा꣣व꣡ति꣢ ॥१२०४॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

अभि प्रिया दिवः कविर्विप्रः स धारया सुतः । सोमो हिन्वे परावति ॥१२०४॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣣भि꣢ । प्रि꣣या꣢ । दि꣣वः꣢ । क꣣विः꣢ । वि꣡प्रः꣢꣯ । वि । प्रः꣣ । सः꣢ । धा꣡र꣢꣯या । सु꣣तः꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । हि꣣न्वे । पराव꣡ति꣢ ॥१२०४॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1204 | (कौथोम) 5 » 1 » 4 » 9 | (रानायाणीय) 9 » 3 » 1 » 9


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अब परमात्मा से होनेवाली आनन्द-वर्षा का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

(दिवः) तेजस्वी जीवात्मा के (प्रिया) प्रिय धाम अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय कोशों को (अभि) अभिलक्षित करके (धारया) धारारूप से (सुतः) अभिषुत किया गया (कविः) क्रान्तद्रष्टा, (विप्रः) विशेषरूप से पूर्णता देनेवाला (स सोमः) वह रसागार परमेश्वर क्रमशः (परावति) सबसे परे स्थित आनन्दमयकोश में (हिन्वे) पहुँचता है ॥९॥

भावार्थभाषाः -

रस के भण्डार परमेश्वर में से अभिषुत की गयी आनन्द-रस की धाराएँ जीवात्मा को पूर्णरूप से आप्लावित कर देती हैं ॥९॥ इस खण्ड में परमात्मा की महिमा, परमात्मा और जीवात्मा के मिलन तथा ब्रह्मानन्द-रस का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ नवम अध्याय में तृतीय खण्ड समाप्त ॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमात्मन आनन्दधारासंपातो वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

(दिवः) द्योतमानस्य जीवात्मनः (प्रिया) प्रियाणि धामानि अन्नमयप्राणमयमनोमयविज्ञानमयानन्दमयकोशाख्यानि (अभि) अभिलक्ष्य (धारया) धारारूपेण (सुतः) अभिषुतः, (कविः) क्रान्तद्रष्टा, (विप्रः) विशेषेण पूर्णताप्रापकः (स सोमः) असौ रसागारः परमेश्वरः क्रमशः (परावति) परःस्थिते आनन्दमयकोशे (हिन्वे) गच्छति ॥९॥

भावार्थभाषाः -

रसागारात् परमात्मनोऽभिषुता आनन्दरसधारा जीवात्मानं पूर्णत आप्लावयन्ति ॥९॥ अस्मिन् खण्डे परमात्ममहिम्नः परमात्मजीवात्मसंगमस्य ब्रह्मानन्दरसस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।१२।८, अ॒भि प्रि॒या दि॒वस्प॒दा सोमो॑ हिन्वा॒नो अ॑र्षति। विप्र॑स्य॒ धार॑या क॒विः—इति पाठः।